बुराँस ( पहाडों का गुलदस्ता)

बुराँस उत्तराखण्ड का प्रमुख पुष्प है, यह उत्तराखण्ड के  हिमालयी क्षेत्रों में 2000 से 3500 मीटर की ऊंचाई पर पाया जाता है । बुराँस के पेड़ों पर मार्च-अप्रैल माह में लाल रंग के बहुत सुन्दर  फूल खिलते हैं, इनकी सुन्दरता मन मे एक अलौकिक शांति प्रदान करती है, एवं  मन को मोह लेती हैं, बुराँस के पेड़ जमीनी सतह से लगभग 8-15 मीटर तक लम्बे होते है, बुराँस के पेड़ की बनावट कुदरती तौर पर कुछ इस तरह से होती है जैसे मनो कि कोई गुलदस्ता हो,  नीचे से पेड़ संकरा एवं चिकना होता है, और उपर जाते जाते सुन्दर फूलों के साथ फैल जाता है,  इसे पहाडो़ का गुलदस्ता भी कह सकते है।. बुराँस के  पेडों की पत्तियां बनावटी तौर पर दूसरे पेडों की पत्तियों से बिलकुल अलग होती है, इसकी पत्तियों की बनावट भिन्न प्रकार की होती है, इसकी पत्तियां दूसरे पौधों के मुकाबले लम्बी एवं ठोस होती है.,  इसके वृ्क्ष की बनावट भी सबसे अलग होती है..! पर अब जिस तरह से जंगलो का दोहन हो रहा है एवं प्रदूषण बढ़ रहा है, इससे हमारे जंगलो का सतित्व खतरे में है,  इस धरा पर प्रकृ्ति ने इंसानो को  न जाने कितने रूपों में अनमोल भेट प्रदान किये है, पर इंसान इसकी महता को नहीं पहिचान पा रहा है,  अब स्थिति ये है कि धीरे धीरे हमारी प्रकृ्तिक सम्पदा पतन की और बढ़् रही हैं चीजें लुप्त होती जा रही है ये हम सब प्राणी मात्र के लिए बहुत चिंता क विषय बना हुआ है।

बुराँस का उपयोग :

  बुराँस का प्रयोग अनेकों रूपों से किया जाता है, साथ ही जंगलो में बुराँस का पेड़ विषेश महत्व रखता है, पर्वतीय क्षेत्रों में पेयजल स्त्रोतों को यथावत रखने में बुराँस महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है। प्राकृ्तिक संपदा के रूप में भी यह महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है।अगर औषधी के रूप मे देखा जाए तो यह बहुत ही प्रयोगशाली सिद्ध हुआ है,  बुरांस का प्रयोग  भिन्न प्रकार के औषधियों मे किया जाता है,  इससे निर्मित औषधियां बडीं ही लाभकारी होती है, बुरांस के पुष्प का रस भी निकाला जाता है, यह अनेक बीमारियों मे भी लाभकारी है। पहाडी़ गाँवों मे स्थानीय लोग जंगल से बुराँस ले कर इसका शरबत  (जूश) निकाल लेते है,  एक तरफ से इसको अब कई लोगों का आय का साधन भी माना जाता है, पहाडी़ क्षेत्रों में गाँवों के लोग पेडों से बुराँस को निकाल कर बजार मे बेचते है जिससे उनको उसके बदले मे  आंशिक रूप से कुछ पैसा मिल जाता है, जिससे उनको आर्थिक रूप से कुछ सहायता मिल जाती है, और बाजार मे जा कर बुराँस से निर्मित कई वस्तुएं कई गुना  महंगे दामों मे हमारे सम्मुख प्राप्त होती है..!  इनमे से शरबत एवं औषधियाँ प्रमुख है,  बुराँश का शरबत हृ्दय रोगियों के लिए लाभकारी माना जाता है ! बुराँश सिर्फ मनुष्यों के लिए ही नहीं बल्कि अन्य जीवों के लिए भी उपयोगी है, इनमे से प्रमुख है मधुमक्खी, जी हाँ, मधुमक्खी को बुराँश का फूल सबसे ज्यादा पसन्द  हैं..! वह सबसे ज्यादा बुराँश के फूल का रस लेती है. क्योंकि वह आसानी से मिल जाता है, फिर मधुमक्खी इस रस से शहद का निर्माण करती है, परन्तु यह शहद आसानी से प्राप्त नहीं होता, क्योकि इसका स्रोत अधिकतर जंगलो या आस पास के ग्रामीण क्षेत्रों मे मिलता है, यह शहद बहुत ही उपयोगी होता है।   प्रकृ्ति के इस अनमोल देन में एक और खूबी होती है, बुराँश के फूलों की पंखुडियों में एक तरह का रस पाया जाता है  जो बहुत ही स्वादिष्ट एवं मीठा होता है, कई लोग कभी कभी इसके साथ बुराँस की पखुंडियों को भी खा जाते हैं.! साथ ही बुराँस कई अन्य प्रकार से भी उपयोगी है ! सूख जाने पर इसकी पतियाँ काफी काम आती है, गाँव के लोग इसकी पतियों को समेट कर घर लाते है, और इसे अपने पालतू जानवरों ( गाय, भैस ) के गौशालाओं मे डाल कर गौबर के रूप में खाद बना लेते है,  यह  सर्वोत्तम खाद माना जाता है जो  उपजाव भूमि एवं फसल के लिए बहुत उपयोगी है,  इससे खेतों मे फसल की पैदावार भी बहुत अच्छी होती है। बुराँस की लकडियां भी बहुत काम आती है,  इसकी  लकड़ी का इस्तेमाल भिन्न प्रकार के कृषि यंत्रों के हत्थे बनाने में किया जाता है। और साथ ही ग्रामीण लोग इसकी लकडीं का उपयोग खाना बनानें मे भी करते है। यह प्रकृ्तिक का ही चमत्कार है जो एक पेड़ बुराँश में इतने सारे गुण भरे हुए है, और इतना उपयोगी है।धन्यवाद..!

© देव नेगी